जुलाई महीने की यादें
दिनांक :- २६/१२/२०२१
दिन :- रविवार
मेरी डायरी मेरी साथी ! जुलाई महीने की कुछ यादों के साथ आज मैं उपस्थित हूॅं । वैसे मैं तीन दिन से तुम्हारे पास आने की कोशिश कर रही थी लेकिन फुर्सत नहीं मिलने के कारण तुमसे आज मिलने आई हूॅं । वैसे मुझे मालूम है तुम पूछोगे ही कि मैं तीन दिन तुमसे मिलने क्यों नहीं आई इसका कारण है मेरी बेटी मेरी लाडो का जन्मदिन । २४ दिसंबर को उसका जन्मदिन था । अब बेटी का जन्मदिन है तो माॅं को खास तैयारी तो करनी पड़ेगी ना । बस वही कर रही थी और इसीलिए समय नहीं मिला । तुम तो जानती ही हो । मैंने तुम्हें बताया ही था कि पिछले साल दिसंबर महीने में मेरे ससुर जी की अचानक ही मृत्यु हो गई जिस कारण पिछले साल हम लोग उसका जन्मदिन नहीं मना पाए । इस साल हमने सोचा कि अपने जन्मदिन पर हम-सब उसके लिए ऐसा कुछ करेंगे जिससे कि वह पिछले साल की अपनी यादों को भूल जाए और इस साल की खूबसूरत यादों को अपने मन मस्तिष्क में हमेशा के लिए रखें । ईश्वर की कृपा से इस साल हमने अपनी लाडो का जन्मदिन अच्छी तरह मनाया । हमने उसका जन्मदिन दो दिन पहले कैसे मनाया उसकी सारी बातें दिसंबर की डायरी में मैं तुमसे जरूर करूंगी । अभी मैं तुमसे जुलाई की बातें करने आई हूॅं तो आज जुलाई की ही बातें करते हैं । वैसे तो तुम भी जानती हो और हम सभी जानते हैं कि जुलाई के महीने में ही भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है क्योंकि पद्मपुराण के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाती है । ऐसे तों द्वितीया तिथि ११ जुलाई शाम ०७ बजकर ४७ मिनट से शुरू हो गई थी लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में कोई भी तिथि सूर्य के उदय के साथ ही माना जाता है यही वजह है कि १२ जुलाई सूर्योदय के बाद भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली गई थी ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! उड़ीसा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ का धाम हिंदुओं के चार धामों में से एक माना जाता है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा यहां पर सैकड़ों साल से हो रही है। जगन्नाथ पूरी में भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण विशाल और प्राचीन मंदिर है । इस मंदिर में लाखों भक्त हर साल दर्शन के लिए आते हैं । इस स्थान का मुख्य आकर्षण जगन्नाथ पूरी की रथयात्रा भी हैं । यहां पर यह रथयात्रा किसी त्यौहार से कम नहीं मानी जाती है । अब तो इस रथयात्रा को पूरी के अलावा देश के कई हिस्सों में भी निकाली जाती है । हमारे बिहार - झारखंड में भी यह रथयात्रा निकाली जाती है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसमें भाग भी लेते हैं । रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज होता जिस पर श्री बलराम होते हैं उसके पीछे पद्म ध्वज होता है जिस पर सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होते हैं और सबसे अंत में गरूण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं जो सबसे पीछे चलते हैं । भगवान श्रीकृष्ण , बहन सुभद्रा और भाई भाई बलराम सात दिन तक माता गुण्डिचा के मंदिर में विश्राम कर देवशयना एकादशी के दिन वापस घर लौटते हैं अर्थात अपने मंदिर में लौटते हैं । जगन्नाथ पूरी का यह मंदिर एकलौता ऐसा मंदिर है जहां द्वापरयुग के तीन भाई - बहन की प्रतिमा एक साथ है और उनकी पूजा - अर्चना भी एक साथ ही की जाती है।
मेरी डायरी मेरी साथी ! ऐसे तों पुरी जाकर इस रथयात्रा को देखने का सौभाग्य मुझे तों अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है लेकिन जैसा कि मैंने तुम्हें अभी बताया हैं कि अब देश के कई हिस्सों में इस रथयात्रा को निकाली जाती है । जब मैं हजारीबाग ( झारखंड ) में थी तो मुझे इस रथयात्रा को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । यह २०१३-१४ की बात है जब मैं इस रथयात्रा की हिस्सा बनी थी लेकिन इस बार टेलीविजन पर देखकर ही घर के सभी सदस्यों ने
भगवान जगरनाथ का आशीर्वाद लिया ।
आज २३ जुलाई है । वैसे तो हमारे देश और इस पूरी दुनिया में बहुत ऐसी बातें आज के दिन यानी २३ जुलाई को घटित हुई होगी लेकिन सारी बातें तों इतिहास में दर्ज नही की गई हुई है । कुछ महत्वपूर्ण बातें ही हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों में जगह मिली है । उन्हीं महत्वपूर्ण बातों को आज मैं तुम्हें बताने वाली हूॅं जों आज यानी २३ जुलाई को घटित हुई थी । हमारी जिंदगी में कुछ बातें सुख की होती है तों कुछ दुख की ठीक वैसे ही इतिहास में भी घटित वह घटनाएं कुछ सुखद है तों कुछ दुखद ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! हमारे देश में एक समय ऐसा भी था जब समाचार और मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो और दूरदर्शन ही थे। बचपन में तुमने भी तो देखा ही होगा । हाॅं तो २३ जुलाई १९२७ ( 23 जुलाई 1927 ) को आकाशवाणी की स्थापना की गई थी और उस समय इसका नाम भारतीय प्रसारण सेवा (इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन) रखा गया था। देश में रेडियो प्रसारण की शुरुआत आज के दिन अर्थात् २३ जुलाई १९२७ से हुई थी । इसी महीने १८५६ को बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ था । यें समाज सुधारक के साथ - साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे । यही वह नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूर्ण स्वराज की माॅंग की थी । इनका ही कहना था " स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूॅंगा । हमारे देश के एक और स्वतंत्रता सेनानी " चंद्रशेखर आजाद " की भी जयंती इसी महीने २३ तारीख को ही होती है । २३ जुलाई १८०६ ( 23 जुलाई 1906) को ही हमारे देश के क्रांतिकारी नेता चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था । चंद्रशेखर आज़ाद कहते थे कि " दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे आजाद ही रहे हैं और आजाद ही रहेंगे ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! अब तुम सोच रही होगी कि यह सारी बातें मुझे क्यों बता रही हो ? वों इसलिए कि मैं एक ट्यूशन टीचर होने के नाते अपने पास पढ़ने आए हुए बच्चों को तारीख के अनुसार इतिहास में घटित बातें उन्हें जरूर बताती हूॅं । तुम कह सकती हो कि वह मेरे पढ़ाने का एक तरीका यह है कि पढ़ाने के क्रम में ही मैं उस तारीख से संबंधित बातें उन बच्चों को जरूर बताती हूॅं । यह सारी बातें जो मैंने तुम्हें अभी बताई है यें मैंने उन्हें तारीख को बताई थी । पहले जब मैं हजारीबाग में स्कूल में पढ़ाती थी तभी से ऐसा करना मेरे रूटीन में शामिल हो गया था जिसे मैं ट्यूशन में भी जारी करना नहीं भूली थी ।
अब तो यह हर दिन का हिस्सा हो चुका है आगे भी मैं इसे जारी रखना चाहती हूॅं और जारी रख भी रही हूॅं । जुलाई के महीने में और भी बातें मैंने उन्हें बताई थी लेकिन अभी दिसंबर चल रहा है तो कुछ बातें दिमाग से निकल चुकी है इस कारण जितनी यादें थी आज मैंने तुम्हें बता दी बाकी अगस्त महीने की कुछ यादों के साथ फिर से मेरी वापसी होगी तो मेरा इंतजार करना अभी के लिए बस इतना ही चलती हूॅं तुम अपना ख्याल रखना ।
गुॅंजन कमल 💓💞💗
# डायरी